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पूजा के बाद आरती क्यों होती है अनिवार्य? जानिए इसके पीछे छिपा आध्यात्मिक रहस्य

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पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती: परंपरा नहीं, बल्कि परमात्मा से जुड़ने का माध्यम

हिंदू धर्म में पूजा का समापन आरती के बिना अधूरा माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूजा के बाद ही आरती क्यों की जाती है? क्या यह सिर्फ एक धार्मिक नियम है, या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है?

📜 आरती का अर्थ और महत्व:

‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आरात्रिक’ से निकला है, जिसका अर्थ है अंधकार को हटाना। पूजा के अंत में आरती करना दरअसल प्रकाश, ऊर्जा और दिव्यता का आह्वान है। इसमें घी, कपूर या तेल से जलाए गए दीपक को भगवान के समक्ष घुमाया जाता है, जो आत्मज्ञान और भक्ति का प्रतीक होता है।

🔔 पूजा के बाद आरती क्यों की जाती है?

पूजा के दौरान हम मंत्र, जल, फूल, और फल अर्पित करते हैं लेकिन इन सभी अर्पणों का अंतिम समर्पण आरती से होता है। आरती की लौ से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पूरे वातावरण को शुद्ध करती है और नकारात्मकता को दूर करती है।

जब भक्त दीपक की लौ को एकटक देखता है और भक्ति गीत गाता है, तब उसका मन पूरी तरह प्रभु में लीन हो जाता है। आरती उस क्षण को दर्शाती है जब भक्त और भगवान के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है।

🕉️ शास्त्रों में आरती का महत्व:

विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति आरती और धूप को देखता है, वह अपनी कई पीढ़ियों का कल्याण करता है। स्कंद पुराण कहता है कि यदि कोई मंत्र या विधि नहीं जानता, फिर भी यदि वह आरती करता है, तो उसकी पूजा स्वीकार की जाती है।

आरती के बाद उसकी लौ को हाथों से छूकर माथे पर लगाना, दिव्य ऊर्जा का प्रत्यक्ष आशीर्वाद लेना होता है। यह केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक अनुभव है।

✨ निष्कर्ष | Conclusion:

चाहे आप पूजा कितनी भी श्रद्धा से करें, आरती उसके आध्यात्मिक समापन का प्रतीक होती है। यह न केवल घर के वातावरण को पवित्र करती है, बल्कि आपके अंतर्मन को भी प्रकाशमय करती है। इसलिए अगली बार जब आप आरती करें, तो उसे केवल रस्म न समझें—यह परमात्मा से मिलने का सबसे सशक्त माध्यम है।

📝 Disclaimer: यह लेख आध्यात्मिक जानकारी के लिए है। व्यक्तिगत धार्मिक अनुभव और विश्वास भिन्न हो सकते हैं।

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